Bhoramdev mandir : छत्तीसगढ़ का ऐतिहासिक धरोहर

Bhoramdev mandir भारत एक ऐसा देश है जहां हर कोने में ऐतिहासिक धरोहर छुपा है। छत्तीसगढ़ राज्य भी इस धरोहर से युक्त है, और वहां के भोरमदेव मंदिर इसका एक शानदार उदाहरण है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसकी स्थापना 11वीं शताब्दी में हुई थी।

Bhoramdev mandir
Bhoramdev mandir

Bhoramdev mandir भोरमदेव मंदिर की महत्वपूर्ण विशेषताएँ उसकी विशेष वास्तुकला और संस्कृति में छुपी हैं। इसकी विशालकार संगीतमय कलाओं वाली दीवारें और मूर्तियां दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देती हैं। मंदिर का परिसर खुद में एक कला का संग्रहालय है, जो उस समय की महानता को दर्शाता है जब वस्तुकला में समृद्धि थी।

Bhoramdev mandir यह मंदिर कावरधा जिले से 18 km की दुरी में स्थित है और इसे धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माना जाता है। यहां के आगंतुकों के लिए यात्रा का एक अद्वितीय अनुभव होता है, जहां वे प्राचीन भारतीय स्थापत्यकला और धरोहर का आनंद उठा सकते हैं।

Bhoramdev mandir इस मंदिर के दर्शन करने से न केवल आपको उसकी अद्वितीयता का अनुभव होगा, बल्कि आपको छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर के प्रति भी नवीनतम जानकारी प्राप्त होगी। इस प्राचीन मंदिर का अवलोकन करना वास्तव में एक अद्वितीय साहसिक अनुभव हो सकता है।

भोरमदेव मंदिर के दर्शन के लिए दूर दूर से लोग आते है और श्रावण मांस में यंहा काँवरियो का ताता लगा रहता है लोग बड़ी दूर से कंवार में जल ले कर भोरमदेव में महादेव मंदिर आते है और प्रभु को जल अर्पित कर अपनी मनोकामना भगवन के आघे रखते है

पहाड़ के चोंटी में बना है माता का मंदिर

भोरमदेव में महादेव मंदिर के बाद पहाड़ के ऊपर चोंटी में माता का मंदिर बना हुआ है जिसपे चढ़ने के लिए बना है सीडी इस मंदिर की भी पौराणिक मान्यता रही है

मडवा महल – भोरमदेव वे मंदिरों में से एक मडवा महल भी है यंहा पर भी महादेव की शिवलिंग स्थापित है और मांदरी के बहरी दिवार पर नक्कासी से खजुराहो के जैसे आकृतियाँ बनी हुई है

छेरका महल – मदवा महल वाले रास्ते में ही एक और महल नुमा आकृति है जिसको छेरका महल कहा जाता है

घाटियों से घिरा हुआ है भोरमदेव –

भोरमदेव चारो तरफ से पहाड़ो और घाटियों से घिरा हुआ है जिसमे से एक घाटी है चिल्पी घाटी जो छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के सीमा के नजदीक है

कांवड़ यात्रा: भोरमदेव मंदिर आते है श्रद्धालु

हिन्दू धर्म में यात्राओं का विशेष महत्व है, और उनमें से एक महत्वपूर्ण यात्रा है कांवड़ यात्रा। यह यात्रा हर साल श्रावण माह के महीने में शिवरात्रि के पूर्व और पश्चात की जाती है, जब हजारों शिव भक्त भाग लेते हैं।

कांवड़ यात्रा का अर्थ होता है भगवान शिव की प्रतिमा को स्नान करके और उसे अपने कंधों पर लेकर लौटना। यह सफ़र भगवान शिव की प्रसन्नता पाने का प्रयास होता है और श्रद्धालु इसे बहुत ही भक्ति भाव से करते हैं।

कांवड़ यात्रा में यात्री श्रावण के महीने में भोरमदेव में शिवलिंग पर जल चढाने दूर दूर से आते है , हर सोमवार श्रदालुओ से भरा रहता है मंदिर

जिला मुख्यालय कवर्धा से 7 किलोमीटर दूर मौजूद सरोदा बांध तेजी से पट रहा है। निर्माण के 55 सालों में एक भी बार इसकी सफाई नहीं हुई। दो टन प्रति हेक्टेयर की रफ्तार से जमा हो रहे मिट्‌टी-रेत के कारण बांध की उम्र 15 साल तक घट गई है। बांध के जलभराव क्षमता में भी करीब 10 फीसदी की कमी आई है।

सरोदा बांध 1963 में बना है। इसका कुल क्षेत्रफल 409.30 हेक्टेयर है। अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक जिस उताली नाला से इस बांध में पानी भरता है, उसके बहाव के साथ इसमें पत्थरों के बारीक टुकड़े और मिट्‌टी तेजी से पहुंच रहा है। लगातार सिल्ट जमा होने से बांध की जलग्रहण क्षमता घट रही है। वर्तमान में इस बांध में 8 मिलियन क्यूबिक मीटर (एमसीएम) यानि 27 फीसदी पानी बचा है। कैचमेंट एरिया टापू की तरह दिख रहा है। सिल्टेशन को रोकने जल संसाधन विभाग के पास कोई योजना नहीं है।

सुतियापाट में सर्वाधिक 86 फीसदी पानी: वर्तमान में जिले के सुतियापाट जलाशय में दूसरे बांधों की अपेक्षा सर्वाधिक 86.33 फीसदी पानी भरा है। बहेराखार बांध में 50.55 फीसदी, कर्रानाला जलाशय में 37.98 फीसदी और छिरपानी जलाशय में 33.19 फीसदी पानी मौजूद है। सरोदा बांध को छोड़ दें, तो बाकी चारों जलाशय में पिछले साल इस अवधि में 55 से 95 फीसदी तक पानी उपलब्ध था

कावरधा जिले में स्थित रानी धारा जलप्रपात छत्तीसगढ़ की प्राकृतिक सुंदरता का एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करता है। यह जलप्रपात अपनी विशालकार सुंदरता और शांत माहौल से परिचित है, जो यहां के प्राकृतिक शांति का अनुभव कराता है।

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